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लफ़्ज़

आसान नहीं मन की हलचल को लफ़्ज़ों में पिरोना,
वो तड़प, चुभन, तन्हाई, आहें कैसे चंद लफ्ज़ों में सुनामी को समेटे |

वो बचपन का अकेलापन जो सिर्फ चल न पाने के कारण बस सभी को खेलते हुए देख कर ही मुस्कुरा देना हो या पिकनिक पर सभी बच्चो में से सिर्फ मेरा नाम काटना क्योकि में चल नहीं सकती |

कोर्ट रूम के एक कोने में अपनी टूटती हुई शादी को बचने की एवज़ में अपने चरित्र का हनन  हो या आत्मसमर्पड़ के बाद भी रिस्ता न निभा पाने की तोहमत|

आत्मनिर्भर होते हुए भी अपने माँ बाप पर एक भोझ होने का दुःख या खुल कर रो भी न पाने की बेबसी |
उन्ही की इज़्ज़त और न ख़राब कर अपनी तरक्की से मुँह मोड़ कर पछताने का अफ़सोस |
दिल के रिस्तो पर जिस्म की कमी के भरी होने की आह |
समझौते के रिश्तो में सम्पन्नता दिखाने की तड़प |
 तन्हाई का सन्नाटा, रिश्तो में स्वार्थ, कैसे करे कोई चाँद लफ्ज़ो में हालत को बया |

शायद न कर सकूँ अपने एहसासो को बया पर ये लफ्ज़ ही तो है जिन्होने मेरे दिल को हल्का कर दिया है | 

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