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स्त्री

ममता और प्यार है स्त्री,
जलन है, तपन है, अगन है,
तो कभी चुभन है स्त्री 
साहस है, तो सुसाहस भी है स्त्री,
माँ है तो पत्नी भी है स्त्री, लिखने पर आये तो न जाने कितने रूप है इसके ?

जब जन्म लेती है तो लक्ष्मी होती है, माँ के आँचल में चंचल सी बेबाक लहर होती है स्त्री,
जब पढ़ने जाये तो सरस्वती होती है , घर पर माँ का हाँथ बताये तो निर्मल कमल होती है स्त्री,
खेले तो रुपहली और नाराज़ हो तो पहेली भी होती है स्त्री,

खेले तो रुपहली, रूठे तो पहेली, 
ममता के साथ ईश्वर, शिक्षा दे तो गुरु,
प्यार करे तो निर्मल, शोषित हो तो कायर,

अनेको अनकहे रूप है इसके तो फिर क्यों ज़िन्दगी के हर मोड़ पर परीक्षाएं ही देती है रहती है स्त्री ?
खुद में सम्पूर्ण है, प्यार का अम्बार है, फिर भी क्यों औरो पर आश्रित रहती है है ये स्त्री ?

चमुंडा और दुर्गा हा स्त्री पर फिर भी सिर्फ किसी की ऊँगली थामने के लिए क्यों शोषित होती है स्त्री ?

एक बार समझ कर महसूस तो कर के देखो, 
तुम न होती तो 
ये दुनिया न चलेगी, 
घर घर ममता न बटेगी, 
कलाइयाँ न सजेंगी, 
शहनाइयां न बजेगी, 
रोटियों में बच्चों के लिए दुआएं न पकेंगी

जब सब तुमसे ही है तो क्यों किसी की गांलिया, मार, शोषण, दुर्व्यवहार सहती हो ?
कुछ खुद के लिए भी करो, अपने आत्मविश्वास को जगाओ और आत्म निर्भर बनो
अपने नारीत्व पर नाज़ करो